चारोळ्या

एक दिवशी परी मिळाली
अगदी स्वप्नातली वाटली,
मनाशी नात जोडलं
जगाशी नात तोडलं

परी हवी हवी शी वाटली
दुसर कुणीच नकोस वाटल

पण कस जमेल प्रेम ???
मी माणूस ती परि. . 
मी कुरूप ती सुंदरी।

अक्कल नाही  तिला म्हणून
नाही  म्हंटली चीचुन्दारी …
हा हा हा …



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ना मेरा प्यार तुजे कबुल था ,
ना तेरा इन्कार मुझे कबूल था .
बस इकरार कर के बैठा मे
जब  तेरा नाराज होणा जाहीज था …



आता काय  बसलोय बोम्बलत….
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बाईको म्हणजे बाईको  असते .
मला आणि माज्या संसाराला जपणारी ती सुंदर भेट असते
निसर्गाच्या किमायातून निर्माण जालेल नात असते .
एक माया एक शक्ती आणि एक लाडकी बाहुली असते .

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शेवटी मैत्रीचं प्रेम ..

मानलं कि मी बावळट आहे ... पण इतकं पण नाही कि शून्य आहे ... गणित भले कच्च असेल माझं ... पण इतिहास माझा पक्का आहे ... रुसणं-फुगणं जमतंय ...